रविवार, 2 जून 2019

लोधी जाति का इतिहास अत्यन्त प्राचीन तथा गौरवपूर्ण

लोधी जाति का इतिहास अत्यन्त प्राचीन तथा गौरवपूर्ण है। कहा जाता है कि सृष्टि की रचना के उपरान्त मानव सभ्यता की रचना हुई तभी परमात्मा द्वारा श्रुतिज्ञान ऋषियों ने अपने निर्मल अन्तःकरण में धारण कर प्राकृत भाषा में लिपिबबद्ध कर लोक में प्रकाशित किया। वही ईश्वरीय ज्ञान है। सार्वभौमिक विद्वानों का मत है कि वेद संसार का प्राचीनतम मानवीय साहित्य हैं वेदों का कथन झुठलाया नही जा सकता। वेदों का समय जितना प्राचीन है, आर्य जाति का इतिहास भी उतना ही प्राचीन है

परिच्छेद- एक

लोध (लोधी) शब्द की उत्पत्ति’

वैसे लोध शव्द की उत्पत्ती किन कारणों  से हुवे वह अभी अध्यन की विषय अवश्य ही है। लेकिन विद्यमान प्रमाण इसे परिभाषीत करने के लिए प्रयाप्त हैं।


वेदों  के प्रमाण 

लोध जाती की उल्लेख वेदों गर्न्थादी मे परिभाषित स्थितियो मे व्याख्या मिल्ते है। लोध (लोधी) शब्द का उल्लेख प्राचिन ग्रन्थ तथा एक विशेष धरोहर ऋृगवेद के मंडल 3 अध्याय 4 सूत्र 53 मंत्र 23 में निम्न प्रकार से व्याख्या किया हुवा मिल्ता है।


न सायकस्य चिकिते जनोसां लोधं पशुमन्यमानाः।नवाजिनं वाजिना हासयन्ति व गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति।


इस मंत्र में ‘लोध’ शब्द का उपयोग गुणवाचक विशेषण के रुप में उपयोग हुआ है। ‘लोध’ वीर रस को प्रस्तुत करता है। वेदों के प्रमुख भाष्यकार स्वामी दयानन्द जी ने ‘लोधं’ शब्द की व्याख्या साहसी, बुद्धिमान, वीरश्रेष्ठ तथा युद्ध विद्या में निपुण और व्यूह रचना करना तथा रक्षा करने में सामर्थवान हों। ‘लोधं’ मनुष्य का एक गुण विशेष है। जो कभी योद्धाओं को उनकी वीरता और कुशलता के कारण ही सेनापति व सेनानायकों को प्रदान किया जाता था। जैसे वेदमंत्रों को पढ़ने वाले को पंडित कहा जाता है उसी प्रकार जो मनुष्य युद्ध विद्या में निपुण थे वही लोध कहलाये। ऋग्वेद का उर्पयुक्त मंत्र विशेषकर उस सीन पर प्रयुक्त हुआ है जहां राजा को सेना के गठन संबधी ज्ञान कराया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि ‘लोध’ गुण विशेष वाले क्षत्रियों का नाम था। जो बाद में एक जाति के रुप में परिवर्तित हो गया। आचार्य सायणा ने अपने भाष्य में ‘लोध’ शब्द ऋषि विश्वामित्र के लिये विशेषण में प्रयुक्त किया है। जब वे अपनी तपस्या में पूर्णतया लगे हुए थे और तपस्या में लीन अपने प्राणों तक की चिन्ता नहीं थी। यदि यही मान लिया जाये कि ‘लोध’ ऋषि विश्वामित्र का नाम था, यह भी संभव हो सकता है कि उनकी प्रेरणा से उन्हीं के समान गुण वाले क्षत्रियों ने अपना नाम लोध रख लिया हो उसकी समुदाय विशेष का नाम लोध पड़ गया।


अब तक उर्पयुक्त मंत्र तथा लोध शब्द की व्याख्या पर प्रकाश डालने वाले कई विद्वान इस प्रकार हैः-

1. वेदों के प्रमुख भाष्यकार ऋषिवर स्वामी दयानन्दजी। 2. दक्षिण के द्रविड़ ब्राहा्रण सायणाचार्यजी। 3. सुप्रसिद्ध भाष्यकार एवं वशिष्ठ गोत्र के दुर्गाचार्यजी। 4. पारस्कर देश के रहने वाले निसम्तकार यास्काचार्यजी। 5. डा॰ रामस्वरुप ऋषिकेष। 6. श्रोत्रिय छोटेलाल शर्मा एम॰ आर॰ एन॰ (लन्दन) 7. श्री विष्णुदयाल शर्मा विधायक 8. श्री श्रवण कुमार त्रिपाठी 9. श्री महेशचन्द्र जैन ‘शील’ 10. आचार्य रामकुमार रामकृष्ण तिवारी 11. गुप्तकाल के प्रारंभ के अमर सिंह।


इतने विद्वानों के लोध शव्द पर दिए उन्के मतों का विधिवत अध्ययन करने के पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि लोध शब्द पर एक दो विद्वानों के मतों को छोड़कर सभी मतानुसार ‘लोध’ शब्द एक गुण विशेष था। वह गुण वोध करने के ध्येय से प्रयोग किए जाने वाले शव्दों मे उत्तम शव्द था जो कालान्तर में जाति के रुप में प्रचलित हुआ।


                                                                परिच्छेद- दो

लोधी क्षत्रिय जाति की उत्पत्ति’

वेदों  तथा  सनातन धर्मानुरूप

सृष्टि की रचना के बाद संभवतः मानव सभ्यता तथा वंश पंरपरा स्थापित हुई होगी। तदोपरान्त वर्ण व्यवस्था स्थापित हुई हो, राजवंशावलियों के अनुसार मनु के दो पुत्र थे-मरीचि और अत्रि। मरीचि के कश्यप और कश्यप से सूर्य नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। यहीं से सूर्य वंश की उत्पत्ति हुई। इधर अत्रि से समुद्र और समुद्र से चन्द नामक पुत्र का जन्म हुआ। यहीं से चन्द वंश की उत्पत्ति हुई। चन्द से परम तेजस्वी बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। चन्द्रवंशी राजा बुध बड़े धार्मिक, तेजस्वी और पराक्रमी राजा थे। वे अत्यन्त सुन्दर थे। अपनी विद्वता एवं बुद्धिमानी के कारण ही वे ‘बुध’ कहलाये। राजा बुध ने ऋग्वेद के उर्पयुक्त मंत्र का अध्ययन कर लोध गुण युक्त चन्द्रवंशी क्षत्रियों की एक विशाल सेना का गठन किया। इसी सेना के बल पर उन्होंने अनेक युद्ध जीते। सूर्यवंशीय क्षत्रिय राजा इक्ष्वाकु की बहन इला देवी के साथ विवाह किया तदुपरान्त चक्रवर्ती राजा हुए। बस इसी समय से महाराज बुध ने लोध गुण युक्त चन्द्रवंशीय क्षत्रियों को ऋग्वेदानुकूल लोध  क्षत्रिय नाम दिया। हो सकता है कि राजा बुध के समय वर्ण व्यवस्था हो और जाति प्रथा न हो। जाति प्रथा के कौटुम्बिक व कर्म के सिद्धान्त को ध्यान में रखकर राजा बुध ने लोधगुण युक्त चन्द्रवंशी क्षत्रियों को ही ‘लोध’ क्षत्रिय की संज्ञा दी हो। बाद में कौटुम्बिक सिद्धान्त को मानकर उनके परिवार जनों ने अपने को लोधी कहा हो और आगे चलकर भिन्न-भिन्न परिवारों का एक समूह जाति के रुप में परिणित हो गया। अतः लोधी समाज का संबध राजा बुध से स्वाभाविक है। क्यों कि राजा बुध स्वंय चन्द्रवंशीय क्षत्रिय थे। अतः उन्होंने अपनी सेना में पारिवारिक व चन्द्रवंशीय क्षत्रियों को ही प्रधानता दी होगी। तभी से उनके वंशजों ने अपने नाम पर लोधगुण युक्त बोद ‘बुध’, ‘बुधौरिया’, ‘बुघरैया’ फिरके आज भी विद्यमान हैं। जो लोधी जाति के ही फिरके माने जाते है। लोधी जाति की उत्पत्ति के बारे में कई बार विद्वानों के मत अलग-अलग है। कि ‘लोधी’ जाति एक अत्यंन्त प्राचीन विशुद्ध चन्द्रवंशी क्षत्रिय जाति है। जिसका नामकरण वैदिक शब्द ‘लोध’ (अर्थात योद्धा वीर) गुण तथा युद्धकर्म के आधार पर हुआ है। इस जाति की प्राचीनता पौराणिक ग्रन्थों में इसका वर्णन प्रमाणित करता है।


परशुराम युद्ध 


 लोधी क्षत्रियों का भी परशुराम से युद्ध हुआ जिसका उल्लेख हमें पौराणिक जनश्रुतियों में कई स्थानों पर मिलता हैं यदि सत्य की खोज की जाए तो पौराणिक आख्यानों के अनुसार परशुराम लोधी क्षत्रिय (लोध गुण वाले चन्द्रवंशियों) संघर्ष तो हुआ है। परशुराम, यादव संघर्ष का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। संभवतः परशुराम के संघर्ष के दौरान ही लोधगुण युक्त चन्द्रवंशी क्षत्रियों ने परशुराम से बचने के लिये अपने पूर्वजों के नाम पर अपनी जाति का नाम रख लिया हो। जैसे यदु संतान ने अपने को यादव कहना प्रारंभ किया और महाराजा बुध की संतानों ने बुध, बुधेरिया आदि कहना प्रांरभ किया हो। और इससे पहले सभी लोध गुण युक्त चन्द्रवंशी लोधी ही कहलाते हों। जैसे कि इस संघर्ष के समय अनेक लोधी क्षत्रियों ने शास्त्र धारण करना छोड़कर कृषि कार्य अपना लिया और क्षात्र (युद्ध के हतियार) से खेती करने लगे

                                                                परिच्छेद- तीन

‘भृगुवंशी परशुराम चन्द्रवंशी लोधी क्षत्रियों के प्रतिद्वन्दी क्यों बने ‘


इस संबध में एक घटना निम्न प्रकार बताई जाती है। चन्द्रवंश में आगे चलकर कीर्तिवीर्य अर्जुन नाम का प्रतापी राजा हुआ था। जो अपने बाहुबल, साहस और पराक्रम के कारण सहस्रबाहु अर्जुन के नाम से विख्यात हुआ। एक दिन अचानक राजा सहस्रबाहु अर्जुन आखेट करते हुए, जमदग्नि ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। जो आपस में संबधी भी बताये जाते थे। ऋषि ने अपनी पत्नी की इच्छापुर्ति का सुन्दर अवसर पाकर कामधेनु के प्रताप से तत्काल राजा व उसकी सेना की खाने, पीने व ठहरने की व्यवस्था कर दी। जब राजा को कामधेनु के प्रभाव का ज्ञान हुआ तो उसने भंेट स्वरुप कामधेनु को ही देने की ऋषि से याचना की। ऋषि ने इसे इन्द्र की धरोहर बताकर, राजा को इसे सौंपने में अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर राजा ने कुपित होकर कामधेनु को ले जाने का असफल प्रयास किया। जैसे ही राजा के सैनिक कामधेनु को लेने के लिए आगे बढ़े कामधेनु के प्रत्येक रोम से एक सैनिक बन गया। और राजा को युद्ध में पराजय मिली। कामधेनु वापस इन्द्रलोक चही गई। और राजा ने लज्जित होकर कुपित भाव से, ऋषि को अपनी राजधानी से निष्कासित कर दिया। इस अवसर पर ऋषि जमदग्नि के चारों पुत्र आश्रम से बाहर गये हुए थे। जब वे लौटे तो सर्वाधिक क्रोध परशुराम को आया। और उन्होंने तत्काल सहस्रबाहु अर्जुन के विनाश का बीड़ा उठाया। उसने न केवल सहस्रबाहु का वध किया, बल्कि चन्द्रवंशी क्षत्रियों को तहस-नहस कर दिया। अवश्य ऐसा ही कोई कारण रहा होगा जिससे परशुराम क्षत्रिय कुल द्रोही बने। और उन्होंने उनके विनाश में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। परशुराम से भयभीत होकर कुछ लोधी क्षत्रिया शंकर भगवान की शरण में चले गये। और वहां शिव की उपासना करते रहे। और उस स्थान का नाम ही लोधीपुरी हो गया। परशुराम क्षत्रिय विनाश की कामना कर लोधीपुरी पहंुचे। तभी शंकर भगवान ने परशुराम को ललकार कर कहा ‘मैरे होते हुए आप किसी को हानि नहीं पहुंचा सकते। इसके लिये आपको युद्ध करना होगा’। यहां पर परशुराम और लोधी क्षत्रियों में युद्ध हुआ। शंकर भगवान के आर्शीवाद से परशुराम को यहां से लज्जित होकर अपने आश्रम वापस लौटना पड़ा। तभी से शंकर भगवान का नाम लोधेश्वर भगवान पड़ गया। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले में महादेव (धमेड़ी) नामक स्थान पर लोधेश्वर महादेव का एक प्राचीन विशाल मंदिर है। जो भारत के सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। यहां वर्ष में चार मेले लगते है।। इसी अध्याय में, श्री महेश चन्द्र जैन शील द्वारा दिये गये तथ्यों का उल्लेख करना भी परमावश्यक है। जो उन्होंने अपने भारतीय इतिहास में, लोधी क्षत्रियों का स्थान नामक लेख में दिये हैं- 1. हमने सर्वप्रथम आदि पुरुष वृषभ वेद के पुराण में देखा कि जिस व्यक्ति में तेजस्वी, तामषी और तपस्या के गुण हों वही लोधी है। 2. रामायण में महर्षि बाल्मीकि लिखते है कि जब भगवान राम सीता की खोज में विभन्न स्थानों पर तब वृषभ नामक राजा ने जो लोधी था राम की अगवानी की और पूर्ण मदद करने की इच्छा व्यक्त की। 3. तेलगू रामायण में भी इस प्रसंग का वर्णन किया गया है। 4. महाभारत में कौरव सेनापति कहते हैं कि मेरे पक्ष के लोधी वीरों की सेना मध्य भाग में रहेगी। जो आग आरै पीछे से होने वाले आक्रमण को विफल करने में सक्षम है। क्योंकि वे आदि देव महादेव की शरण लेकर युद्ध में आये है।


चन्द्रवंशी क्षत्रियों के विध्वंस का मुख्य कारण महाभारत ही रहा। क्योंकि महाभारत में चन्द्रवंशी क्षत्रियों के मध्य यह सीधा आपसी संघर्ष था। महाभारत में भी लोधी जाति का वर्णन मिलता है। इस युद्ध के बाद समस्त चन्द्रवंशी राज्य परिवार व प्रजा भी छिन्न-भिन्न हो गई। द्वापर युग में गोकुल व बृजभुमि में यादव, अहीर, गुर्जर गडरिया, लोधी राजपूत , लोधा जाट आदि जातियों का उल्लेख मिलता है। इनका मुख्य व्यवसाय गौपालन था। द्वापर के पश्चात व कलियुग के प्रारंभ के समय में लोधी जाति का इतिहास प्रयुक्त नहीं है।


 अब से लगभग ढाई तीन हजार वर्ष पूर्व लोधी जाति के बारे में फिर उल्लेख मिलता है। तब से लेकर अब तक लोधी जाति का इतिहास किसी न किसी रुप में अवश्य मिलता है। गौतम बुद्ध के समय लोधी क्षत्रियों की स्थिति संतोषजनक थी उस समय जव वौद्ध प्राप्ती के वाद पुनः कपिलवस्तु के तरफ निकले तो कुछ उन्के अनुयाई भक्त भी उनके साथ कपिलवस्तु पहोचे और वही वौद्ध दर्शन मे लिन रहे। लोध की आगमन से कपिलवस्तु मे खोया रौनक फिरसे वापस हुवा, लोधी मेहनती होते उन्हो ने वही अपना गर गिरहस्ती वसाना सुरू किया और धिरे धिरे उत्तर प्रदेश सहीत के उत्तरी क्षेत्रो अभी के नेपाल के लुम्विनि कपिलवस्तु से पश्चिम तक फैले। इनका आगमन पश्चिम दिशा से होने के कारण कपिलवस्तु से पुर्व नही वढे, इनके समय मे वुद्धकाल शान्तिमय तथा खुशहाल रहा। इनके कई मुख्य शासन केन्द्र थे। जिसमे उज्जैन प्राचीन नगरी है। कहा जाता है कि परशुराम के समय से ही यहां लोधी क्षत्रिय निवास और शासन करते थे। इतिहासकारों के अनुसार यहां राजा लोहित चन्द्रवंशी लोधी क्षत्रिय नरेश हुआ है। जिसमें असुरों को परास्त कर बड़ा यश प्राप्त किया।

 


मौर्य काल में भी एक विशेष प्रकार की विशेष सेना कुमुक लोधी क्षत्रियों की रखी जाती थी। जो शांति एवं सुरक्षा का दायित्व निर्वाहन करती थी। जिसकी संख्या दस हजार थी। इस आशय का ताम्र पत्र विदिशा में है। तथा मौर्य काल में सुरक्षा नामक पुस्तक में इसका विस्तृत विवेचन है।


                                                                    परिच्छेद- चार

‘लोधी सम्वत ‘


भारत में अभी तक नौ संवत प्रकाश में आये हैः- 1. वीर निर्वाण संवत 2. विक्रम संवत 3. लोधी संवत 4. शंक संवत 4. शालिवाहन संवत 6 ईस्वी संवत 7. गुप्त संवत 8 हिजरी संवत 9 मधा संवत।


लोधी संवत जिस तहर न्यायप्रिय शासक, विक्रमादित्य के समय विक्रम संवत का उल्लेख मिलता है। उसी तरह विक्रमादित्तय के बाद, ब्रहा्रस्वरुप लोधी के राज्याभिषेक के समय प्रारंभ हुआ था। लोधी संवत का उल्लेख अब से 1832 वर्ष पूर्व (अर्थात 160 ई॰ पु॰) राज सिंहासन पर विराजमान राजा शालिवाहन ने, मैसूर के मुम्मड़े नामक नगर में शिलालेख में उत्कीर्ण कराया था। यह शिलालेख प्राकृत, संस्कृत, पाली तथा तेलगू भाषा में उत्कीर्ण है। इस में विक्रमादित्य के पश्चात, ब्रहा्रस्रुप लोधी के राज्यारोहरण पर लोधी संवत के उसके राज्य में प्रचलन का वर्णन खुदा हुआ है। लोधी संवत की प्रारंभ तिथि के बारे में विद्वानों के मत अलग-अलग है। पं. काशीलाल जायसवाल, जुगल किशोर मुख्तार, डा॰ हेमन्त जेकोवी इन सभी के मतों का समाधान करते हुए, जार्ज जामान्टियर ने ब्रहा्रस्वरुप लोधी के राज्याभिषेक को ही प्रमाण मानकर लोधी संवत का प्रारंभ काल माना है। लोधी क्षत्रिय बृहत् इतिहास के लेखक लोधी खेमसिंह वर्मा के मतानुसार, लोधी संवत प्रचलन काल ईस्वी सन की पहली या दूसरी शताब्दी रहा होगा। यहां पर सभी के मतों व समीपवर्तीय संवतों को ध्यान मे रखकर लेखक के मतानुसार अनुमानित तारीख इस प्रकार है। वीर संवत का प्रचलन 76 ई॰ पू॰ हुआ, तथा विक्रम संवत का प्रचलन 57/58 ई॰ पू॰ हुआ तथा लोधी संवत का प्रचलन इसके बाद हुआ और लोधी संवत के पश्चात शक संवत प्रचलन में आया। जिसका प्रचलन काल सन् 78 ई॰ बताया जाता है। और इन दोनों संवतों के मध्य के समय में विक्रमादित्य के पुत्र चन्द्रसेन व पौत्र शालिवाहन ने शासन किया, क्योंकि शालिवाहन ने ही शकों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में शक संवत चलाया तथा सन् 160 ई॰ में उपयुक्त संवतों का उल्लेख शिलालेखों पर अंकित कराया, जो प्रमाणस्वरुप आज भी देखे जा सकते है। दोनों पीढि़यों का शासन काल 50-60 वर्ष मान लिया जाये और कुछ समय ब्रहा्रस्वरुप लोधी का शासनकाल जोड़कर देखा जाए, तो लोधी संवत का प्रचलनकाल अनुमानित ईस्वी सदी का दूसरा दशक का मध्यान्तरण् रहा होगा। इस हिसाब से आज सन् 2004 लोधी संवत 1990 हो सकता है। बोद्धकाल में बौद्ध धर्म की प्रगति व प्रसार और वैदिक धर्म के पतन के कारणों से चिन्तित आर्य ऋषियों ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये समस्त क्षत्रियो राजाओं को आमंत्रित कर आबू पर्वत पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें अनेक राजाओं को यज्ञाग्नि के समक्ष दीक्षित कर उन्हें राजपूत नाम दिया। तभी से अग्निवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई। तभी से यज्ञ में सम्मिलित चन्द्रवंशी लोधी क्षत्रियों नें बड़ी संख्या में अपने उपनाम के रुप में राजपूत शब्द अपनाया। और वे अपने को लोधी राजपूत कहने लगे। आजकल क्षत्रिय और राजपूत दोनो ही एक दूसरे के पर्यायवाची है।

                                                                    परिच्छेद- पाँच

मुगलकालीन लोधी शासक’

1-महारानी दुर्गावती


दुर्गावती का जन्म सन् 1525 के आसपास महोबा (उ प्र॰) में हुआ था। दुर्गावती का विवाह सन् 1543 ई॰ में गढ़ मंडला (जबलपुर के नजदीक) के राजगौड़ राजा दलपत शाह के साथ सम्पन्न हुआ। दलपतशाह गौड़ राजा थे और उनका राज्य गौंडवाना कहलाता था। दलपतशाह अल्पायु में बीमारी के कारण सन् 1548 में स्वर्ग सिधार गये। तब रानी ने अपने तीन वर्षीय पुत्र को युवराज बनाकर राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली। सन् 155 से 1560 के मध्य आक्रमणकारी बाज बहादुर सुल्तान को अपनी दून वाली पल्टन (जिसमें गौड़ और लोधी राजपूत ही बहुल संख्या में थे) को कई बार हराया। अन्त में सम्राट अकबर के आक्रमण के समय रानी ने अपने बचना मुश्किल देखकर, वीर क्षत्राणी ने अपनी ही कटार से प्राणान्त किया। इस तरह से महारानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई।


2-हीरागढ राज्य

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जनपद में हीरापुर का प्राचीन राघराना है। इसको पहले हीरागढ़ के नाम से जाना जाता था। इस वंश के पूर्वत राजा जगन्नाथ सिंह महदी माता के उपासक थे। इसीलियें ये महदेल लोधी कहलाये।


3-हटरी राज्य

मध्य प्रदेश के दमोह जनपद में हटरी राज्य की स्थापना सन् 1994 से पहले हुई। यहां के राजा महदेले लोधी थे। सम्राट औरंगजेब के समय यहां चिन्तामन सूर शासन करते थे। इनके विषय में अनेक पुस्तकों में उल्लेख मिलता है।


4-हुसैनगढ़ राज्य (वीर छबीलराम लोधी)

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में प्रसिद्ध एैतिहासिक स्थान था। इस राज्य की स्थापना सम्भवतः मुगल सम्राट औरंगजेब के प्रपौत्र, बादशाह मुहम्मदशाह के सुबेदार भाई हुसैन अली के समय में हुई हो। सन् 1719 में एक एैतिहासिक घटना के तहत हुसैन अली द्वारा स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया, और एक क्रूर अत्याचारी शासक बन बैठा। अत्याचार से तंग आकर वीर छबीलाराम लोधी ने, हिन्दू जनता संगठित कर हुसैनअली को हमला बोल दिया तथा घमासान युद्ध हुआ और हुसैन अली मारा गया। वीर छबीलाराम लोधी को वियजश्री प्राप्त हुई। हुसैनगढ़ को फतह करके राज्य की बागडोर छबीलाराम लोधी के हाथ में सौपी गई। सम्भवतः इस वजह से इस नगर का नाम फतेहगढ़ पड़ गया हो। क्योंकि हुसैनगढ़ आज फतेहगढ़ के नाम से विख्यात है।


5-ग्वारी राजवंश (इटावा) राजा रतनसिंह लोधी

उत्तर प्रदेश मंे इटावा जनपद में ग्वारी नाम स्थान है। अट्ठारहवी शताब्दी में यहां राजा रतन सिंह लोधी राज्य करते थे। उनके वैभवपूर्ण ठाठ व बाट व यश गाथा को, राजा छत्रसाल बुन्देला ने कन्नौज जाते समय देखा व सुना तो वे लालचपूर्ण भाव से वापसी में ग्वारी के निकट अपना डेरा डालकर, मित्रता का हाथ बढ़ाते, हुए राजा रतन सिंह को डेरे में आमंत्रित किया। राजा रतन सिंह लोधी ने सरदारों सहित राजा छत्रसाल बुन्देला का आदर सत्कार किया। और उसी के डेरे में रात्रिभोज के समय विषैले भोजन को खा कर सरदारों के बेहोश हो जाने पर ग्वारी नरेश रतन सिंह लोधी सेनाविहीन युद्धक्षेत्र में कूद पड़े। घमासान युद्ध करते हुए सैकड़ों सैनिकों से एकसाथ युद्ध करते हुए निकलने का असफल प्रयास किया। अन्त में वीरगति को प्राप्त किया।


6-वीर रिखोला लोधी

गढ़वाला राज्य के माली और जवारी की जागीरदारी रिखोला लोधी के परिवार के हाथों में ही थी। वीर रिखोला लोधी गढ़वाल नरेश राजा महीपत शाह का चतुर साहसी वीर सेनानायक था। राजा महीपतशाह ने सन् 1629 से 1648 तक उत्तर प्रदेश के गढ़वाल क्षेत्र पर शासन किया।


7-कनहा पिपरी (नागपुर)

वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के नागपुर जनपद में कन्हान पिपरी एक छोटा सा नगर है। यहां के जमींदार लगंड़ा पटेल नामक लोधी थे। यह छत्रपति शिवाजी के वंशज रघुजी भौंसले की राज्य सीमा में आते थे। रघुजी भौंसले के कोतवाल द्वारा मालगुजारी मांगे जाने पर ले घंट ले जा की गाली देने की बात सुनकर राजा रघुजी भौंसले ने लंगड़ा पटेल को लिखित संदेश दिया कि हम अमुक दिन तुम से निपटने को आ रहे है। पटेल लोधी ने चुनौती स्वीकार कर स्वागत के लिये तैयार हैं का सदेश भिजवा दिया। निश्चित समय पर राजा और रानी के आने पर लोधी पटेल द्वारा फूलमालाओं द्वारा स्वागत किया गया। और राजा को डेढ़ किलो सोने का घंट (लिंग) सोने के पात्र मंे रखकर देना व रानी को 52 एकड़ अंगूर, संतरे और मौसमी का बाद दान में देना, तथा राजा व रानी का लज्जित भाव से दान स्वीकार करना, ताम्रपत्र नागपुर अजायबघर में देखने को मिलता है।

परिच्छेद- छ

1857-58 के राज्य क्रान्ति के लोधी वीर व वीरागंनाऐं‘

वीर महातिया डलचन्द्र लोधी सन् 1857 में इन्होंने मराठा सरदार नाना साहब के अनुयायी के रुप में राज्य क्रान्ति में भाग लिया था। ठा॰ दरयाव सिंह संगरौर लोधी अवध क्रान्ति सन् 1857 में कूटोंधन जिला फतेहपुर के ठा॰ दरयाव सिंह ने जो सिंगरौर फिर्के के लोधी थे, अंगे्रजों से खुलकर लोहा लिया था उन्हें व उनके दोनों पुत्रों को फतेहपुर कचहरी पर फांसी दी गई।

उमराव सिंह लोधी

यह मध्य प्रदेश के मण्डला जनपद के ग्राम उमरी जागीरदार थे। इन्होंने सन् 1857-58 मे अपने 500 वीरों के साथ अंगेजों से संग्राम किया पकड़े जाने पर मृत्युदण्ड दिया गया। बहादुर सिंह लोधी मध्य प्रदेश के मण्डला जनपद के ही सुकरीबरगी के जमींदार थे। जिन्होंने 1857 की राज्यक्रान्ति में अपनी अद्वितीय बहादुरी का परिचय दिया।


महारानी अवन्तीबाई लोधी’

विख्यात महारानी अवन्तीबाई का नाम कौन नही जानता। जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई से बढ़कर बहादुरी, बलिदान, त्याग की भावनाओं को जन्म दिया। और 1857 की राज्यक्रान्ति में अंग्रेजों से खुलकर लोहा लिया था। अन्त में भारत की स्वतंत्रता के लिये अपने जीवन की आहुति 20 मार्च 1858 को दे दी थी।


वीरागंना सरस्वतीबाई लोधी

सरस्वतीबाई पाटन के जमींदार दीवान अर्जुनसिंह वनेरिया की पुत्री थी। उनका जन्म सन् 1840 के आसपास हुआ। सन् 1857 की बुन्देलखण्ड की अमर क्रान्ति में जहां रानी अवन्तीबाई लोधी, रानी लक्ष्मीबाई, मालतीबाईलोधी, तथाराविया बेगम अपने शौर्य के शिलालेख लगा गई वहां सरस्वतीबाई लोधी ने भी चलते-चलते स्वराज्य के शौर्य के उन शिलालेखों, पर त्याग तथा सतीत्व का शिलालेख लगातीं गई। वीरबाला क्षत्राणी सरस्वतीबाई जिसने सन् 1857 के भारत के स्वतंत्रता संग्राम मंे अपने प्राणों की आहुति देकर न केवल अपनी युक्ति देकर बुन्देलखण्ड के 1360 क्रान्किारियों को फांसी के फन्दे से छुड़ाया बल्कि अपने सतीत्व की रक्षा का भी एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। यह वीरांगना पूजनीय है।


‘हिन्डोरिया के राजा किशोर सिंह जूदेव’

आजकल मध्य प्रदेश के दमोह जनपद में हिन्डोरिया नामक एक बड़ा गंाव है। यह वही गांव है जहां किशोरसिंह जुदेव के पूर्वज प्रसिद्ध राजा ईश्वरदास लोधी की राजधानी थी।


धरन गांव के जागीरदार बहादुर सिंह 

धरन गांव महाराष्ट्र में 150000 आबादी वाला एक नगर है। सन् 1857 की राज्यक्रान्ति के समय यह नगर और इसके आसपास की जागीर एक लोधी राजपूत राजा श्री बहादुर सिंह के अधिकार में थी। इस राजा ने क्रान्तिकारियों का साथ दिया था।


‘अमरसिंह लोधी हैदराबाद’

इसी राज्य के प्रथम स्वतंत्रता सैनानी मंगल पाण्डे का करण करते हुए, हैदराबाद से लेकर दिल्ली तक के अंगे्रजों के छक्के छुड़ाने वाला क्रान्तिकारी वीर अमर सिंह लोधी पकड़े जाने पर 09/09/1857 को फांसी पर लटका दिया।


‘वीरागंना मालतीबाई लोधी’

यह वीरागंना रानी लक्ष्मीबाई की बालसहेली व अंगरक्षिका थी। रानी को मौत से बचाने में अपने प्राणों की आहुति देकर अमर हो गई। क्रान्तिकारी वीर अमरसिंह व गणेश महतो इनका जन्म हमीरपुर जनपद के ग्राम गोहाण्ड के लोधी राजपूत परिवार में हुआ था। ये क्रान्किारियों के सहयोग थे। 11 मई 1857 को फांसी दी गई।


‘दीवान अर्जुन सिंह वनेरिया’

 मध्यप्रदेश पाटन के जागीरदार थे।


‘रावसाहब उमराव सिंह’

 ये जालन्धर सैदपुर (ललितपुर) के जागीरदार थे।


‘दीवान पर्वत बली सिंह’

 ये शाहपुर (म॰ प्र॰) के जागीरदार थे।


‘जनक सिंह लोधी’

यह वीर उ॰ प्र॰ के जनपद इटावा के दवाह का निवासी था। ये लक्ष्मीबाई के सम्मानित सदस्य थे।


‘मातादीन लोधी’

 यह वीर मौहल्ला तेलीवाड़ा दिल्ली का निवासी था। सन् 1857 की क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया। 22 फरवरी 1858 को पकड़े जाने पर फांसी दी गई। विस्तृत जानकारी के लिए रुस्तम सिंह, प्रेम द्वारा रचित पुस्तक अमर शहीद मातादीन लोधा का अध्ययन करें।


‘जवर सिंह लोधी’

 उज्जैन निवासी जवर सिंह लोधी को, कई अंग्रेज अधिकारियों की हत्या के फलस्वरुप 18 जून 1857 को महीदपुर में फांसी की सजा दी गई।


‘महीपत सिंह लोधी’

 उनका जन्म बिहार राज्य के रणछोड़ ग्राम में हुआ। स्वतंत्रता सेनानियों के गुप्त भेद न बताने के फलस्वरुप दिसम्बर 1857 में फांसी की सजा सुनाई गई। जनक सिंह लोधीः- इनका जन्म सन् 1810 को ग्राम बड़ागांव सागर जनपद में हुआ था। इन्हें सार्वजनिक रुप से फांसी दी गई।


‘मदनलाल सिंह लोधा’

 हैदराबाद के स्वतंत्रता सेनानी थे।   


परिच्छेद- सात

लोधी राजपूत जाति के प्रमुख गोत्र

1. मथुरीया

2. पथरिया

3. जरिया 

4. नरवरिया   

5. माहुर


 उपगोत्र

1.अबदलिया, 2. अगरिया, 3. अगरवाल 4. अहयऊला, 5. अयोध्यावासी, 6. अलाउरीद, 7. अन्तरिया, 8. अरे ला, 9. बैस, 10. बजरूल्लिद, 11. बैजर, 12. बैजूलिया, 13. अजरूल्लिद, 14. बकीरिया, 15. बकथा, 16. बाला, 17. बल्हा, 18. बलित, 19. बालित, 20. बमरोलिया, 21. बनकारिया, 22. बनार, 23. बनौरी, 24. बन्धिया, 25. बन्डसारी, 26. बण्डाल, 27. बग्हू, 28. बन्जारी, 29. बल्जवार, 30. बकलरिया, 31. बनाहा, 32. बन्खा, 33. बर्क, 34. बनोदिया, 35. बनईयन, 36. बराजी, 37. भरौदी, 38. भरिया, 39. भारिच, 40. भार, 41. भरतेली, 42. भरथरिया, 43. भरवारिया, 44. भटलिया, 45. भटपुरिया, 46. भेला, 47. भोसिया, 48. मुन्सी, 49. भुरिया, 50. भूपला, 51. भूसेली, 52. भूसिया, 53. भूसू, 54. विलखानिया, 55. बिनौतन, 56. बुध, 57. बुधवार, 58. बुझंवा, 59. बझिवा, 60. अरमेनियां, 61. औधिया, 62. बदानक, 63. बदोरिया, 64. बदरेवा (बुधौरिया) 65. बधरुला, 66. बाधी, 67. बद्धी, 68. बरत, 69. बरन्ज, 70. बरातिया, 71. बरभारिया, 72. बरच्छा, 73. वर्द, 74. बदिया, 75. बरजियानी, 76. बरहा, 77. बारिया, 78. बरमिया, 79. बरैदिया, 80. बरोथा, 81. बर्लिया, 82. बरसुन्दा, 83. बरता, 84. बजनदित, 85. बसनपवात्र, 86. बरवारिया, 87. बसौनिया, 88. बसगती, 89. बरवारी, 90. बसिया, 91. बसिनियां, 92. चन्देल, 93. चन्दरोहा, 94. चरौलिया, 95. चारी, 96. चरहा, 97. चतुवंश, 98. चारिया, 99. चैहान, 100. चैधरी, 101. चैतरिया, 102. चैसरिया, 103. छतरी, 104. छतीरिया, 105. छुकारिया, 106. छीपिया, 107. छवरहर, 108. छूला, 109. दरिवनिया, 110. दैवार, 111. दरौनिया, 112. दनिया, 113. देरबलहा, 114. दरिया, 115. बदिया, 116. बधवार, 117. बधा, 118. बधेला, 119. बगरेटिया, 120. बाघला, 121. बैना, 122. बैघन, 123. बसिया, 124. बसगोती, 125. बसनानिया, 126. बसनवान, 127. बस्थी, 128. बटरसिया, 129. बाथा, 130. बाथल, 131. बाथम, 132. बथवा, 133. बाथी, 134. बधमी, 135. बौराहा, 136. बौरदी, 137. बदौती, 138. बेगारी, 139. बेगलोनियां, 140. बैजवार, 141. बल्हा, 142. वेलवान, 143. बेलवार, 144. बरिया, 145. बेसन, 146. भलीआरा, 147. भदौरिया, 148. भजीराथी, 149. भान्त, 150. डेवत, 151. धनकोलिया, 152. धनबेली, 153. धरावर, 154. धौलिया, 155. ढाकर, 156. धरिया, 157. धुरपुरिया, 158. दिगोरिया, 159. डोगरपुरिया, 160. डूबर, 161. डूबरसिया, 162. डुलजा, 163. दुबां, 164 दुनई, 165. दनयान, 166. दखनिया, 167. गुधौनिया, 168. गोधियन, 169. गोलारियन, 170. गंगावासी, 171. गंगापारी, 172. गरल, 173. बुन्देला, 174. बुथाला, 175. चनदस, 176. चन्दैरिया, 177. गरनिया, 178. गोलय, 179. गोटिया, 180. गोंरट गिरिया, 181. घया, 182. घरभा, 183. घ्ज्ञरोहा, 184. घोरचढ़ा, 185. घूरिया, 186. घोस, 187. घुसीली, 188. गिरिधारी, 189. गोवरधना, 190. गोकिया, 191. गोलापूरब, 192. गोली, 193. गुनहा, 194. गोतिया, 195. गुहइया, 196. गूजर, 197. गूजरी, 198. गुलरया, 199. गु नागर, 200. गुनिया, 201. गोसरया, 202. ग्वालवंश, 203. हयल, 204. देवरिया, 205. डैरियस्त, 206. डेस्वाटी, 207. डेसवाली, 208. हेती, 209. हुनुइनियां, 210. हरद्वारी, 211. हरगोली, 212. हयूरा, 213. होरजा, 214. इन्दौरिया, 215. इटीना, 216. जाहोवंश, 217. जेरबरथ, 218. जेसवनिया, 219. जयवाला, 220. जलनिया, 221. जानोरकी, 222. जनकेल, 223. जार, 224 जरोली, 225 जारोस, 226. जरवंश, 227. जरीथा, 228. जरेटी, 229. जरेहा, 230. तमरेलिया, 231. जरिया, भूसल, 232. जरुरिया, 233. जाट, 234. जोरल, 235. गर्ग, 236 गर्गवंशी, 237. गरी, 238. गमरनया, 239. गुरिया, 240. जागियन, 241. झराकी, 242. झारियल, 243. झूकया, 244. झलहा, 245. झूरेया, 246. झूधा, 247. गुरनवा, 248. कबीरवंश, 249. कछवाहा, 250. कहारपुरिया, 251. कल, 252. केलिया, 253. कानपुरिया, 254. केतल, 255. ककरया, 256. कनरया, 257. कन्नौजिया, 258. कनकपुरिया, 259. कंसल गात, 260. कपरया, 261. कपूरी, 262. करनया, 263. करेरिया, 264. करगी, 265. करजाधा, 266. करजवार, 267. करलियर, 268. करमी, 269. करखलावर, 270. करमेंनिया, 271. करनास, 272. करसोदिया, 273. कस्तगीर, 274. कसूनिया, 275. कसवानी, 276. कटारिया, 277. कथंग, 278. कथरिया, 279. कटवार, 280. कोल, 281. कुदरवंशी, 282. कोलिया, 283. कोन, 284. कौशल गोत, 285. कोरल, 286. खादला, 287. दवागी, 288. खजरिया, 289. खालर, 290. खलुरहा, 291. खर्चवा, 292. खुमिया, 293. खारा, 294. महेगियम, 295. महगरही, 296. महगवंई, 297. महोला, 298. मसहसैश्सि, 299. महोइया, 300. सोनिया, 301. महरौलिया, 302. महोलेनियम, 303. मैनपुरी, 304. मेनछी, 305. मकरया, 306. मीरापुरिया, 307. मकई, 308. मलोलिया, 309. माली, 310. मालवा, 311. ममहर, 312. मनोबोध, 313. मंदली, 314. मनहवर, 315. मानकपुरिया, 316. मराहिया, 317. मरोलिया, 318. मरहटा, 319. खरहा, 320. खडवंशी, 321. खरै, 322. खराजाट, 323. करछवा, 324. खरजवार, 325. खरजी, 326. खरजुरहा, 327. खरमिया, 328. खरवार, 329. खटरहार, 330. खामवा, 331. किरमा, 332. किसान, 333. कसोरिया, 334. कोविंद, 335. कुहरवंशी, 336. कुभीनिय, 337. कुनंद, 338. कुडया, 339. कुरेला, 340. कुररहा, 341. कुटिया, 342. लेखरिया, 343. लखेरया, 344. लखोरहा, 345. लखोसा, 346. मरवरया, 347. मरबेली, 348. मथाम, 349. सिंहवार, 350. मननया, 351. मवेली, 352. मीरापुरया, 353. मोहनिया, 354. मोतिया, 355. मोरई, 256. मरचूनरी, 357. मरहर, 358. मोरीरावत, 359. नदोरिया, 360. नगरोला, 361. नगरोरिया, 362. नगरी, 363. नगूना, 364. नहरा, 365. नलहीवाल, 366. नन्दवंशी, 367. सिदिया, 368. नौनिहाल, 369. नबरयाश, 370. नवामी, 371. निरबरया, 372. निरया, 373. लरकट्ठा, 374. लेटिया, 375. लोध, 376. लुधौरिया, 377. लोंगर, 378. लोन, 379. लोट, 380. लुई, 381. लनियार, 382. लुनियान, 383. लुरहा, 384. महनमा, 385. मररया, 386. मदेना, 387. मधार, 388. मदरेली, 389. मगरना, 390. महां, 391. माहलही, 392. महालर्वशी, 393. महान, 394. माहर, 395. महरोअर, 396. माहोल, 397. महोलिया, 398. महाबरदरिया, 399. प्रमार, 400. पवांर, 401. परिहार, 402. महावत, 403. पसरिया, 404. परनामी, 405. परसरी, 406. निरवर, 407. परवार, 408. पुरविया, 409. पतरिया, 410. ओझा, 411. पतलामी, 412. पथरेली, 413. पथराही, 414. परसी, 415. पतुरिया, 416. पटवा, 417. परकटा, 418. पुरजरया, 419. पुरी, 420. परविया, 421. राधापुरिया, 422. रघुवंशी, 423. रेकवार, 424. राज (लववंशी), 425. राजरया, 426. राजपूत, 427. रारवना, 428. रामानन्दी, 429. रावत, 430. रेनिया, 431. रथोर, 432. रामत, 433. रुटेली, 434. राव, 435. सेदवगहा, 436. सेरिया, 437. सेसवार, 438. संदवनया, 439. सेग, 440. सिंगरौर, 441. सकरवार, 442. सनेहटी, 443. सनीसन, 444. सानी, 445. सरिवया, 446. लेवरया, 447. सेखिया, 448. सेखावार, 449. सक्सेना, 450. सनोदिया, 451. सनूसया, 452. सेखवर, 453. लरंकीसरख, 454. सानी, 455. सरिवया, 456. लेवरया, 457. सेखिया, 458. सेखवार, 459. सक्सैना, 460. सनोदिया, 461. सनूसया, 462. सेखवार, 463. सनोरिय, 464. सनवरया, 465. सरासय, 466. सनकत्ता, 467. सरनिया, 468. सरोतिया, 469. सरोदिया, 470. सोंदरिया, 471. सरबरया, 472. सोररया, 473. सेंग, 474. सिकन्दरीन, 475. सिलहा, 476. सिम्भोली, 477. सिमरोलिया, 478. सिगवा, 479. सिगरोलिया, 480. सिरगवाल, 481. सिरगेन, 482. सिरया, सिंगरौर, 483. श्रीवास्तव, 484. श्रीविष्णु, 485. सीसवाल, 486. धौलपुरिया, 487. सीसी, 488. सोनिया, 489. जंघेले, 490. महदेले, 491. कुरमी, 492. महालोधी, 493. सितवी, 494. सोनरया, 495. सोदन्की, 496. सोजरया, 497. सोनर, 498. सोनवाली, 499. सोरा, 500. सूदया, 501. सुगेरिया, 502. सुरेवा, 503. सूसया, 504. सुरेत, 505. सूर्या, 506. सुरखा, 507. सूतिया, 508. तमई, 509. तमराह, 510. तरकिय, 511. तरोथ, 512. तरवरया, 513. ठाकुरहा, 514. ठकुरी, 515. ठाकुर, 516. थरिया, 517. तिलोकचन्दी, 518. तिवाल, 519. तनवर, 520. तुमार, 521. गभैल, 522. सोगरवाल, 523. बाछतवार, 524. धूलगोठिया, 525. खूटैला, 526. कुम्हेरिया, 527. बछगइयां, 528. नहचानियां, 529. खडवडिया, 530. नौहरिया, 531. सैंतिया इत्यादि।

  

परिच्छेद- आठ

‘लोधी क्षत्रिय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी’

अंग्रजी शासन के अन्तिम चरण में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की स्वतन्त्रता के लिए अहिन्सात्मक संग्राम हुआ। देश के लाखों वीर उनका अनुकरण करते हुए स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। लोधी समाज के बन्धु भी आगे बढ़कर आये। देश के सैकड़ों स्वतन्त्रता प्रेती लोधी बन्ध्ुा जेल गये, उन्हें कई-कई बार और कई कई वर्ष का कारावास हुआ, आर्थिक दण्ड भरना पड़ा, उन्होंने कठोर यातनायें सहन की, अनेक अपनी चल और अचल सम्पत्तियों से हाथ धे बैठे, अनेक को फरारी जीवन व्यतीत करना पड़ा, अनेक लाठी और गोलियों से घायल हुए और वीरगति को भी प्राप्त हुए। कुछ जनपदों की लेखक को प्राप्त सूची के अनुसार लोधी समाज के ऐसे स्वतन्त्रता सेनानियों की नामावली इस प्रकार है।


उत्तर प्रदेश

(1) जनपद बुलन्दशहर

1.श्री भगवान सिंह महाशय जी ग्राम परिहावली पोस्ट – बेलोन, सन् 40-41, में दो वर्ष का काराबास तथा पचास रुपये आर्थिक दण्ड, स्वतन्त्र भारत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलापति त्रिपाठी द्वारा सम्मान, प्रशस्ति युक्त ताम्रपत्र भेंट, केन्द्रीय तथा राज्य सरकार से पेन्शन।

2.श्री कल्यानसिंह आढ़ती डिबाई सन् 1941 मेें जेल यात्रा, केन्द्रीय सरकार से पेन्शन। 

3.रेवती सिंह, गालिबपुर, (डिबाई) – सन् 41 में कारावास, केन्द्रीय सरकार से पेन्शन।

 4.श्री तिरखासिंह उर्फ गिरवर सिंह ग्राम बैरम नगर पोस्ट छतारी, छतारी के नवाब अपनी जमींदारी के गांवों में किसी के पक्के मकान नहीं बनने देते थे। बैरमनगर भी इसका शिाकर था। एक बार अपने दौरे के समय स्वयं पं. जवाहरलाल नेहरु ने श्री तिरखासिंह के पक्के मकान की आधारशिला रखी थी। 

5.श्री तोताराम ग्राम धीमही पो॰ धर्मपुर सन् 1942 में जेलयात्रा चरौरा कोठी जलाने के अपराध में छह माह का फरारी जीवन केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकार से पेन्शन। 

6.श्री सोनपाल सिंह ग्राम धीमही पो॰ धर्मपुर, इनका मामला भी ठीक उक्त श्री तोताराम जैसा ही है।

 7.श्री टोड़ी सिंह ग्राम धीमही धर्मपुर सन् 42 में जेल यात्रा प्रान्तीय सरकार से पेन्शन। 

8.श्री भूपाल सिंह ग्राम धीमही धर्मपुर सन् 42 में जेल यात्रा, पेन्शन प्राप्त होने से पहले दिवंगत। 

9.श्री मोहर सिंह, ग्राम – भीमपुर (डिबाई) पेन्शन प्राप्त करने से पहले दिवंगत। 

10.श्री फतेहसिंह धर्मपुर सन् 1942 में जेलयात्रा प्रदेशीय सरकार से पेन्शन।

 11.श्री मोतीसिंह ग्राम गिल्ली का नगला, धर्मपुर, सन् 1942 में करावास, प्रान्तीय सरकार से पेन्शन।

 12.श्री अंगनलाल ग्राम गिल्ली का नगला सन् 1942 में कारावास, प्रान्तीय सरकार से पेन्शन मुख्यमंत्री श्री हेमवती नन्दन बहुगुणा द्वारा अभिनन्दन व ताम्रपत्र भेंट 

13.श्री मोहन सिंह ग्राम खरिकबारी पो॰ धर्मपुर सन् 1942 में कारावास, प्रान्तीय सरकार से पेन्शन मुख्यमंत्री श्री हेमवती नन्दन बहुगुणा द्वारा अभिनन्दन व ताम्रपत्र भेंट

 14.श्री नारायन सिंह ग्राम खरिकबारी सन् 30-31 और 42 में जेल यात्रा केन्द्रीय सरकार से पेन्शन। 

15.श्री रोशन सिंह ग्राम खरिकबारी पोस्ट धर्मपुर सन् 30-31 में जेलयात्रा केन्दीय सरकार से पेन्शन। 

16.श्री रोशन सिंह ग्राम ईशनपुर पो॰ धर्मपुर 

17.भीमसेन ग्राम बैरम नगर पोस्ट छतारी

 18.पोपसिंह ग्राम बैरम नगर पोस्ट छतारी 

19.प्रसादसिंह ग्राम नगला कोठी पोस्ट जरगवां 

20.लाखनसिंह ग्राम किशनपुर पोस्ट छतारी 

21.गुलाब सिंह ग्राम कुसया फतेहाबाद पोस्ट डिबाई 

22. भरत सिंह ग्राम पोटा कबूलपुर तहसील स्थाना सन् 1942 में जेल यात्रा केन्द्रीय व राज्य सरकार से पेन्शन। 

23-26. सर्व श्री हरीराज सिंह, देवी सिंह, मंगल सिंह, कंछिद सिंह, चारों पोटा, कबूलपुर पोस्ट भौं बहादुर नगर

 27. श्री प्यारेलाल भारतीय नगला जखैरा (जरगवां) भूमिगत सेनानी।


(2) जनपद मैनपुरी/फ़िरोज़ाबाद


1.श्री ऊदल ग्राम भदौरा तहसील नौगांव सन् 1440, 41, 42 मंे तीन बार जेल यात्रायें केन्द्रीय सरकार से पेन्शन। 2.श्री तेजपाल सिंह ग्राम लालई तहसील जसराना, पेन्शन सन् 30 मंे जेल यात्रा। 3.करन सिंह ग्राम लालई तहसील जसराना सन् 1930 में बन्दी जीवन, सरकार से पेन्शन। 4.तेज सिंह ग्राम बैजुआ, तहसील शिकोहाबाद, सन् 1930 में बन्दी जीवन, सरकार से पेन्शन। 5.टोड़ी सिंह ग्राम बूढ़गड्ढा, डाक फरिहा, तहसील जसराना सन् 1941 में जेलयात्रा केन्दीय सरकार से पेन्शन। 6.रामकिशन निवासी नगला भूड़ तहसील शिकोहाबाद सन् 1941 मंे जेल यात्रा पेंशन। 7.श्री राम लाल सिंह ग्राम मिर्जापुर पोस्ट अहरवा सन् 1941 में बन्दी जीवन पेंशन 8.केदार ंिसह ग्राम गनेशपुर तहसील भोगांव सन् 41 में जेल यात्रा पेन्शन। 9.भूप सिंह निवासी नगला तिलोक तहसील करहल सन् 41 में जेलयात्रा, पेन्शन। 10.तारसिंह निवासी सैदलाल तहसील शिकोहाबाद।


(3) जनपद ललितपुर

1.श्री चन्दनसिंह भू0पू0 विधायक निवासी ललितपुर, सन् 1931 और उसके बाद कई बार जेल यात्राओं केन्द्रीय सरकार से पेन्शन। 2.हरप्रसाद ग्राम व पोस्ट बरौदा बिजलौन सन् 41 और 43 में जेल यात्रायें सौ रुपये जुर्माना केन्द्रीय सरकार से पेन्शन। 3.शिराज सिंह ग्राम व पोस्ट शैदपुर सन् 41 में जेल यात्रा सौ रुपये आर्थिक दण्ड, केन्द्रीय सरकार से पेंशन। 4.तेज सिंह ग्राम व डाकघर शैदपुर सन् 41 में जेल यात्रा 5.जंगीसिंह ग्राम व डाकघर शैदपुर सन् 41 में बन्दी जीवन 6.गया प्रसाद ग्राम व पोस्ट शैदपुर सन् 41 में बन्दी जीवन 7.शंकर सिंह ग्राम व पोस्ट शैदपुर सन् 41 में बन्दी जीवन 8.तख्त सिंह ग्राम व पोस्ट शैदपुर सन् 41 में जेल यात्रा 9.खलक सिंह ग्राम सतमासा पोस्ट शैदपुर सन् 41 में कारावास 10.जगन्नाथ सिंह ग्राम सतमासा पोस्ट शेदपुर सन् 41 में कारावास 11.दुर्जन सिंह ग्राम सुनौरी, पोस्ट तारबिहट, सन् 41-42 में जेल यात्रा, केन्द्रीय सरकार से पेन्शन।


(4) जनपद इटावा

1.श्री धनीराम राजपूत ग्राम कन्ही का पुरवा डा. सेहूद दिबियापुर 2.छक्कीलाल राजपूत ग्राम नगला जय सिंह डा. सेहुद दिबियापुर 3.दमरूलाल राजपूत ग्राम माखनपुर डा. दावलीपुर 4.दीनदयाल राजपूत ग्राम किशनपुर डा. दिबियापुर 5.रामदीन राजपूत ग्राम किशनपुर डा. दिबियापुर 6.रामदीन राजपूत ग्राम किशनपुर डा. दिबियापुर 7.दंगेमल राजपूत ग्राम गपचरियापुर पोस्ट सहार


(5) जनपद अलीगढ़

1.श्री रामसिंह ग्राम चैंडोला सुजानपुर डाकघर साधुआश्रम कारावास अवधि 1 वर्ष केन्द्र व राज्य सरकार से पेंशन। 2.रामलाल ग्राम गनेशपुर डा. जिरौली 3.किशनलाल ग्राम भीमपुर हरदासपुर पोस्ट अलीगढ़ बमकेस में फांसी की सजा का आदेश बाद में मृत्युदण्ड से मुक्त, केन्द्रीय सरकार से पेंशन। 4.कल्याण ंिसह ग्राम बरौली जाफराबाद डा. अलीगढ़ केन्द्रीय सरकार से पेंशन 5.मौहरसिंह ग्राम विधीपुर डा. बढा़ैली 6.वासदेव ग्राम विधीपुर डा. बढौली 7.ज्वालासिंह ग्राम सूरतगढ़ तहसील अतरौली 8.किशोरी लाल सिंह ग्राम शेरपुर, डा. काजिमाबाद 9.छिद्दू सिंह ग्राम व डा. कुलवा केन्द्रीय सरकार से पेंशन 10.हेमपाल सिंह ग्राम व डा. कुलवा 11.हेतराम ग्राम भीमपुर हरदासपुर डा. अलीगढ़ 12.नाम अज्ञात ग्राम डोरा नगला परगना गंगीरी 13.नाम अज्ञात गांव बरौला, जाफराबाद डा. अलीगढ़


(6) जनपद हमीरपुर

1.पूज्यपाद स्वामी ब्रहानन्द जी (भू0 पू0 संसद सदस्य) ग्राम बरहरा, त0 राठ सन् 1930, 31, 41 और 42 में कई वर्ष कारावास 2.श्री स्वामी प्रसाद सिंह पूर्व खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ग्राम धगवां डा0 जरिया 3.डात्र नृपति सिंह राठ 4.श्री मातादीन सन्यासी होने पर स्वामी सर्वानन्द ग्राम इटौरा, डा. राठ 5.श्रीपति सहाय रावत निवासी जराखर पोस्ट सझगंवा आप कई बार सपत्नीक जेल गये। 6.ईश्वरदास पुत्र श्री मातादीन निवासी इटौरा डा. राठ 7.इरिदास पुत्र श्री मातादीन निवासी इटौरा डा. राठ 8.कुंजबिहारी लोधी निवासी जराखर नागपुर सत्याग्रह में दो बार जेल गये। 9.कवितसिंह लोधी निवासी जराखर एक बार जेल यात्रा 10.रामभरोसे लोधी निवासी जराखर दो बार जेल यात्रा 11.बैजनाथ लोधी निवासी जराखर एक बार जेल यात्रा 12.मतोला लोधी निवासी जराखर एक बार जेल यात्रा


(7) जनपद एटा

1.श्री मिश्री सिंह ग्राम पिलुआ केन्द्रीय सरकार से पेंशन 2.रामस्वरुप सिंह ग्राम रहमदपुर पोस्ट बिलराम केन्द्रीय सरकार से पेंशन 3.रामलाल गांव फरीदपुर 4.श्री धनपाल सिंह लोधी, ग्राम उदन्पुर, पोस्ट जगांगीर पुर, 2 बाद जेल यात्रा 5.श्री बलवंत सिंह लोधी, ग्राम मितरोल


(8) जनपद पीलीभीत

1.महाशय डोरी सिंह आजाद निवासी पीलीभीत हैदराबाद सत्याग्रह में दो वर्ष का कठोर कारावास 2.श्री छोटे लाल लोधी निवासी कालामन्दिर पीलीभीत दो बार जेल यात्रा


(9) जनपद फर्रुखाबाद

1.श्री सीताराम सरपंच ग्राम मस्तियापुर 2.कुलुपसिंह मूल निवासी जिला मैनपुरी कमालगंज 3.प्रहलाद उर्फ सुखवासी लोधी ग्राम पिपरिया नगला गुढ़ाउ पोस्ट खडिनी केन्द्र व राज्य सरकार से पेंशन 4-5. जोधासिंह व श्री पजन सिंह ग्राम पिपरिया पोस्ट खडिनी करावास व फरारी जीवन 6.रामसनेही लाल ग्राम सौरिख (फर्रुखाबाद)


(10) जनपद कानपुर

1.श्री पी0डी0 ंिसह लोधी खलासी लाइन कानपुर केन्द्र व राज्य सरकार से पेन्शन 2.श्री मोहन लाल ग्राम राजपुर पोस्ट झीझक


(11) जनपद सीतापुर

1.श्रीरामविलास लोधी ग्राम नसीरापुर पोस्ट साहमहोली, उत्तर प्रदेश सरकार से पेन्शन 2.श्री मंगादास निवासी महमूदपुर पोस्ट कुंवरपुर लच्छा केन्द्र व राज्य सरकार से पेंशन 3.श्री भोलाराम लोधी गांव चैम्बा पोस्ट साहमहोली केन्द्र व उत्तर प्रदेश सरकार से पेन्शन


(12) जनपद बहराइच

1.श्री रामगुलाम लोधी निवासी गांव चन्देला पोस्ट बद्र्धा केन्द्रीय व प्रदेशीय सरकारों से पेन्शन 2.श्री गोपतार प्रसाद निवासी गांव महसील, इस समय इनकी विधवा पत्नी को राज्य सरकार से पेंशन मिलती है।

(13) जनपद बस्ती

1.श्री रामप्रसाद लोधी ग्राम नुनेर पोस्ट निहस्था राज्य सरकार से पेन्शन

(14) जनपद उन्नाव

1.शहीद श्री गुलाब सिंह लोधी इस महान क्रांतिकारी वीर का जन्म सन् 1903 ई0 में श्री रामरतन सिंह लोधी के पुत्र के रुप में इस जनपद में फतेहपुर चैरासी में हुआ। क्रान्तिकारियों का नेतृत्व करते हुए सन् 1935 में लखनऊ में अमीनाबाद पार्क में तिरंगा झंडा फहराने पर ब्रिटिश सेना ने गोली से भून दिया। तिरंगे झण्डे की जय भारत माता की जय और महात्मा गंाधी की जय बोलते हुए यह वीर शही हो गया। इसका उल्लेखन भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में मिलता है।

2.श्री पीडी सिंह लोधी ग्राम गोवरहा पोस्ट भगवन्त नगर पांच वर्ष का कारावास तथा पांच सौ रुपये आर्थिक दण्ड केन्द्र व उत्तर प्रदेश सरकार से पेन्शन

3.श्री बाबू लाल वर्मा बजीरगंज पोस्ट सफीपुर एक वर्ष छः माह का कारावास 4.श्री लाल राम ग्राम मुकन्दखेड़ा उन्नाव 5-7 सर्व श्री डालचन्द देवीदीन लल्लू सिंह मरबीजपुर पोस्ट गंगाबाद 8.श्री मुन्नालाल मेंहदेसवा पोस्ट गंगाघाट 9.भवानी सिंह भिटवा सरैया पोस्ट गंगाघाट 10.डा. परमात्मा सिंह लोधी ग्राम गोबरहा पोस्ट भगवन्त नगर एक वर्ष का कारावास (उपयुक्त श्री पीडी सिंह लोधी के अंगे्रज थे) केन्द्र व उत्तर प्रदेश सरकार से पेन्शन 11-12 श्री रुपनसिंह व श्री जगन्नाथ बाबा बजौरनंज पोस्ट सफीरपुर 13.श्री महाबरी प्रसाद ग्राम पोस्ट माखी 14.श्री मदारी लोधी मधुया खेड़ा पोस्ट चांबपुर झलिहई उपयुक्त में से कमांडू पर अंकित श्री पीडी सिंह चन्द्रिका प्रसाद केकनिष्ठ पुत्र थे। सन् 1936 में मिदिनापुर (बंगाल) के कलेक्टर को बम द्वारा उड़ाये जाने वाले बम काण्ड में फरार हो गये थे। कई वर्ष आर्य सन्यासी के रुप में विचरण करते रहे। सन् 1942 के आन्दोलन में फिर कूद पड़े। रेल पटरी उखाड़ते पकड़े गये और कारावास हुआ।


मध्य प्रदेश

1.जनपद बैतूल

(1-2) श्री कन्हैया लाल आर्य व श्री लालता प्रसाद आर्य बैतूल बाजार बैतूल दोनो को केन्द्र व राज्य सरकारों से पेन्शन 2.जनपद वालाघाट

अमर शहीद चेतराम लोधी ग्राम सलैया के गर्जन सिंह के पुत्र चेतराम लोधी ने सन् 1923 के नागपुर झण्डा सत्याग्रह सन् 1930 के गंाधी जी के नागरिक अवज्ञा आन्दोलन और सन् 1942 के ऐतिहासिक भारत छोड़ों आंदोलन में सक्रीय भाग लिया। गिरफ्तार हुआ। कारागार से छूअ कर सन् 1943 में फिर विद्रोह कर दिया। पुलिस द्वारा लाठी चार्ज में गंभीर रुप से घायल और शहीद हुआ।


3.जनपद दतिया

शहीद निर्भय सिंह ग्राम सांकुली भातर के सविनय अवज्ञा आन्दोलन सन् 1930 में किसानों का नेतृत्व करते हुए सक्रिय भाग लिया। अंग्रेजों द्वारा यह वीर भी गोलियों से भून दिया गया।

4.जनपद शिबपुरी

शहीद विक्रम सिंह ग्राम पोहरी, ब्रिटेन से बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत लौटने पर स्वतन्त्र समर मंे कूद पड़ा और अन्ततः शहीद हुआ। वह गरम दल से सम्बद्धथा।

5.जनपद होशेंगावाद

श्री लालाप्रसाद लोधी मैनरोड होशंगावाद केन्द्र व राज्य सरकार से पेंशन

6.जनपद इन्दौर

श्री पन्नालाल वर्मा राजेन्द्र काॅलौनी इन्दौर। हैदराबाद आन्दोलन में सन् 1939 में सक्रिय भाग लिया।


राजस्थान

1.जिला झालावाड़

श्री छोटे लाल वर्मा निवासी – झालावाडा खास गोआ के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी।


2.जिला भरतपुर

ठा॰ गुल्ला राम लोधी ‘सरपंच’ ग्राम भवनपरुा, तहसील रुपवास, जिन्होंने 1942 व 1946 के अन्दोलनों मंे भाग लिया ओर अनेकों बार अंगे्रजी शासन की लाठियां झेलीं व कई वार जेल की यातनायें सहीं।


3.जिला भरतपुर

मंगी लाल लोधी ग्राम बैंहरा तहसील रुपवास जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़ चढ़कर भाग लिया।


पंजाब

1.जनपद जालन्धर

ग्राम सैदपुर के निवासी श्री शिवराज सिंह पुत्र श्री दीवान किशोर सिंह भू0पू0 जागीरदार


हैदराबाद

(1-4) सर्वश्री सुखलाल लोधा, मामा शीतल सिंह बाला सिंह आर्य (रामपुरा), श्री बाबूलाल लोधा 5 मतवाला मदन सिंह सन् 1938 में आर्य समाज सत्याग्रह में भाग कारागृह में बंद मुक्त होने पर फिर सन् 1947-48 में हैदराबाद रियासत को स्वतन्त्र कराने के आंदोलन में भाग, पुलिस लाठी चार्ज मंे गंभीर घायल और शहीद। 6 मगनलाल लोधा निजाम हैदराबाद के कठोर शासन में तिरंगा झण्डा फहराने पर कारग्रह मंे बंदी जीवन।


महाराष्ट्र

(1) जनपद नागपुर

1.श्री तुलसीराम लोधी निवासी सावनेर सन् 1930, 31 और 42 में जेल यात्रायें महात्मा गंाधी के सहयोगी केन्द्रीय सरकार से पेन्शन 2.श्री बुद्वूलाल कंभाले महाराष्ट्र शासन द्वारा ताम्रपत्र से सम्मानित 3.श्री भैया लाल कामदार सुभाष बाबू की लाल सेना के वालन्टियर 1930 ई. के सुवार जंगल सत्याग्रह और जटाम कोहड़ा जंगल सत्याग्रह तथा निजाम हैदराबाद सत्याग्रह में भाग सन् 1942 के आन्दोलन में बंदी 4-8 सर्व श्री किशनलाल कंभाले, खुशाल यादो लोधी तुलसीराम कामदार, लाल साहब श्रीमती हिरियाबाई पटेलन सभी निवासी सावनेर। 9-11 श्री नारायन महाजन बेरड़ी श्री भीमा बाबू आमगावकर श्यामा चेनी श्री धन्नालाल बेहरेखेड़े नागपुर। 11श्री ब्रिजपाल चन्देले कन्हान पिपरी सन् 1942 के रामटेक आन्दोलन के भूमिगत सेनानी।


(2) जनपद भंडारा

श्री प्रेमलाल गोधन धामले ग्राम देव्हाली पोस्ट तुमसर रोड भण्डारा जेल में नौ महीने का कारावास


दिल्ली

श्री बिहारी लाल मौ0 लोधीराजपूत शाहदरा


जनपद बालाघाट (मध्य प्रदेश)

1.श्री अम्बर लोधी सन् 1922 में राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग, जंगल सत्याग्रह में छह मास का कारावास दिवंगत। 2.श्री किशनलाल पुत्र श्री लक्ष्मण सिंह सन् 1930 में जंगल सत्याग्रह में 9 मास का कारावास 3.श्री गेंदालाल लोधी सन् 1942 के भारत छोड़ों आन्दोलन में बंदी तीन मास का कारावास दिवंगत 4. श्री गोपीहिस लोधी पुत्र श्री यशवंत राव सन् 1922 के झण्डा सत्याग्रह में गिरफ्तार पंद्रह दिन का कारावास दिवंगत। 5.श्री घीसूलाल लोधी सन् 1932 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग दस माह का कारावास दिवंगत। 6.श्री चिन्तामन लोधी ग्राम खोंगा टोला सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग, छह माह का कारावास और पच्चीस रुपये का आर्थिक दण्ड दिवंगत। 7.श्री जोगीराम लोधी सन् 1942 के आंदोलन में भाग, छह महीने का कारावास 8.श्री ठाडू लोधी सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग, पांच माह का कठोर कारावास तथा तीस रुपये का अर्थ दण्ड 9.श्री दुकाली नागपुरे पुत्र श्री टीकाराम सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में नौ माह तथा सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 18 माह का कारावास दिवंगत 10.श्री बटनलाल लोधी ग्राम छपेरा मोठगांव सन् 1942 के आन्दोलन में गिरफ्तार बालाघाट में दो माह का कारावास। 11.श्री बुद्ध सिंह लोधी निवासी नगपुरा सन् 1923 के झण्डा सत्याग्रह में भाग, छह माह का कारावास सन् 1948 में स्वर्गवास। 12.श्री ब्रज लाल पुत्र श्री पंचम सिंह निवासी खोंगा टोला सन् 1923 के झण्डा सत्याग्रह में भाग नागपुर में डेढ़ माह का कारावास। 13.श्री बुधाजी लोधी ग्राम बुट्टा झण्डा सत्याग्रह तथा सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में सक्रिय भाग कारावास। 14.श्री भोला सिंह नागपुर झण्डा सत्याग्रह में भाग, छह माह का कारावास दिवंगत। 15.श्री भैया लाल लोधी सन् 1942 के आन्दोलन में भाग, दस माह पंन्द्रह दिन का कारावास दिवंगत। 16.श्री मदारी लाल सन् 1942 के भारत छोड़ों आन्दोलन में गिरफ्तार छह माह का कारावास दिवंगत। 17.श्री मोहन सिंह सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग छह मास का कारावास सन् 1942 के आन्दोलन में चार मास का कारावास। 18.श्री शिवचरन पुत्र श्री बालभक्त सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग छह माह का कारावास 19.श्री सुकुलू सिंह जंगपुरा सन् 1923 के झण्डा सत्याग्रह में भाग, नागपुर में डेढ़ माह का कारावास। 20.श्री सुखराम लोधी सन् 1942 के आन्दोलन में सोलह माह का कारावास। 21.श्री लटारिया नागपुरे पुत्र श्री टीकाराम ग्राम कनड़ी सन् 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में बालाघाट में नौ महीने का करावास। 22.श्रीमती कालीाबाई लोधी ग्राम जाम


जनपद फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)

श्री रामचरन अकराबाद 1942 में 18 माह का करावास जनपद बरेली उत्तर प्रदेश श्री भिखारीलाल निवासी बरेली पूर्व नगर पालिका सदस्य।


जनपद रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

श्री अगन लाल लोधी ग्राम व पोस्ट मदुरा – केन्द्र व राज्य सरकार से पेंशन मिली थी।

  

परिच्छेद- नौ

सन्दर्भसुची:-

भारत की प्राचिन ईतिहास-

भारत के लोधी विर योद्धा एवम विरांगनावो की कथा-  डा एम के लोधी राजपुत

मौर्य काल में सुरक्षा 

लोधेश्वर की कहानी- सुरेन्द्र सिंह लोध

भारतिय स्वतन्त्रता सेनानीयों की सुची – अभीलेख विभाग भारत

11 टिप्‍पणियां:

  1. जय लोधेश्वर जय लोधी समाज

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  3. जय लोधेश्वर जय माँ अवन्ति🙏⛳

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  4. Shahid Shri Gulab Singh Lodhi
    Correct Address:-
    Village-Chandika Khera,
    Post - Fatehpur Chaurasi,
    Tahsil-Safipur,
    District-Unnao, Uttar Pradesh

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  5. काफ़ी सरहनीय जानकारी 👏
    क्या आपसे बात संभव है?

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